Friday 30 April 2021

पहाड़ी सफर


पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाडों को देखता हूँ..

अप्रतिम सौदर्य ओढें
इस नीली धरा में ,,
वो सफेद नीली वर्दी
आँखो में निश्चल सपना लिए
हँसते खेलते बस्ते ,
,
पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाड़ों को देखता हूँ,
,
वो घुमावदार और तीखे रास्ते,
वो नदियों का बहना 
और एक बड़ा समंदर बनाना
उर्जा का स्त्रोत है जहाँ,
,
पहाडों के सफर में हूँ ,
पहाड़ों को देखता हूँ
,
वो बाँज देवदार वृक्ष 
की घनी छाँव भरी ठंडक,
वो तीखे सख्त चट्टानो की गर्मी,
नरम और सख्त 
मौसम का ऐहसास,
,
पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाड़ों को देखता हूँ
,
वह खुली दुकानें 
जो हमारे इंतजार कर रही थीं,
चुल्हे से उतरती रोटी का स्वाद
हमने चखा था जो
निसंदेह स्वादिष्ट थी,
वो चाय जिसमें मीठा कम
अपनापन ज्यादा था
,
पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाड़ों को देखता हूँ,
,
फिर वह पानी देखा
जो पहाडों में ठहरा हुआ था
लेकिन फिर उस जवानी को 
देख आँख भर आई 
जो ढलानों में बह गई,,
,
पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाड़ों को देखता हूँ..

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
रचनाकार: ©दिनेश सिंह नयाल
यमकेश्वर, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
30 अप्रेल, 2021

Saturday 24 April 2021

बदला मौसम

घटा काली है छाई,

ये रात क्यों है?

बौंछार गिरी आँगन में आई,

ये बरसात क्यों है ?

,

बदला सा रंग है,

मौसम है,

फिर भी उमंग क्यों है ?

दिख रहे हैं आज ये पहाड़,

जो छिप जाते थे धुंधले आसमाँ में,

दिख रहे आज खुबसूरत,

फिर भी डर क्यों है ?

,

'जिन्न' बदली ये मौसम ,

फिर भी सर्द क्यों है,

आज बना दिया इंसान ने शमशान

फिर दर्द क्यों है ?

.......

घटा काली है छाई,

ये रात क्यों है ?.....

( मेरा छोटा सा प्रयास अपनी अभिव्यक्ती आप तक पहुँचाने का )


रचनाकार: दिनेश सिंह नयाल 
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित 
24/4/2021